Saturday, June 2, 2012

जल बिन तृष्णा से जल जल कर -------

जल बिन तृष्णा से जल जल कर -------

अनल अनिल आकाश प्रथ्वी और जल,
पञ्च तत्व के योग से ही निर्मित तन |
जल बिन न नदी नाले, न जलाशय भर पाते,
भांप बने जल से ही, मेघ बन बरसते गरजते |
जल से ही कल कल करती बहती-
पावन गंगा-यमुना सरयू और सरस्वती,
जल से ही वन-उपवन की बगिया-
जल से ही आच्छादित यह हरियाली धरती|
जल नहीं तो जीवन नहीं, जल से ही व्यापार है,
जल में ही खैवत है नैया, जल से ही बेडापार है |
रहीमजी भी दे गए, पानी (जल) रखिये सीख,
जल बिन न बना पायेगा, मोती कोई सीप |
जल होगा तभी करुना के आंसू छलकेंगे,
नैनं जल से ही करुना निधि पग धोयेंगे |
जल बिन न निर्मल तन होगा-
मन भी रहेंगा कलुषित,
जल को अब तो संचित करो,
इसको करो न प्रदूषित |
आखिर गंगा-जल से तर्पण से ही मोक्ष पायेंगे,
जल बिन तृष्णा से तो, जल जल कर मर जायेंगे|

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला, जयपुर     

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